Tuesday, February 09, 2021

Some Poems - 2 - दोस्ती

Continuing with the previous post, sharing another poem from long back. The inspiration was a conversation I had with a friend (which was not poetic). Crediting https://hindi.changathi.com/ for helping me convert English text into Hindi where required


 दोस्ती


एक दिन,

एक दोस्त ने कहाँ मुझसे -


ज़िन्दगी तो है एक सागर,

ओर दोस्ती हैं उसमे उठती हुयी लहरें |


दिल है उस सागर से लगता दोस्ती का किनारा,

समुन्दर में तो बनती हैं हज़ारो लहरें

मगर दोस्त वही जो छु जाये दिल तुम्हारा |


तो कहा मैंने अपने दोस्त से


तुम ज़िन्दगी को सागर कह सकते हो मेरे दोस्त मगर लहरों को दोस्ती नहीं |

तुम किनारे को मेरा दिल कह सकते हो मेरे दोस्त मगर अपने आप को बस एक लहर नहीं |


क्युकी लहरें तो बनती हैं,

किनारे तक जाती हैं,

उससे टकराती हैं,

और फिर बिखर जाती हैं |


तुम्ही बताओ,

हमारी दोस्ती के सामने ये लहरें कहा टिक पाती हैं ?


तो मेरे दोस्त ने कहा मुझसे,

क्या बात है गुरु, जिरह के मन में लगते हो आज

तो क्यों ना तुम्ही बतला दो, क्या है दोस्ती का राज़?


तो फिर मैंने कहा अपने दोस्त से


मेरे दोस्त,


दोस्ती तो एक नदी के सामान होती है,

सागर को भी नहीं पता वो कहा से शुरू होती है |

उस नदी को फर्क नहीं पड़ता रास्ते में क्या बंधन आते हैं,

बल्कि वो नदी तो हर रुकावट को भी साथ बहा ले आती है |


किनारो से मतलब नहीं रखती है वो

कभी सौम्य तो कभी चंचल

कभी मध्धम तो कभी छोटी 

कभी उग्र तो कभी शांत 

कभी गहरी तो कभी मोटी, 

बस, अपनी ही धुन में बहती चली जाती है वो |


तुम लहरों को दोस्ती कह रहे थे

मगर

दोस्ती तो वो चीज़ है जो किसी के रोके नहीं रुक पाती हैं

दोस्ती तो वो ख्वाब है जो किसी के जगाने पर भी नहीं टूट पाती हैं

बस नदी की तरह बहते बहते ज़िन्दगी के सागर में मिल जाती हैं | 


फिर अंत में मेरा दोस्त बोला,

सही कहते हो तुम यार -

दोस्ती हो ही नहीं सकती समंदर की लहरें,

कहा हमारा बरसो का याराना और कहा इन लहरों का एकांत वीराना |

लम्बी हमारी बात हो चुकी है, अब चलो, मेस में जाकर खाते हैं खाना |


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